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अपने बल-बूते पर लड़ेंगे यूपी चुनाव: मायावती

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कांशीराम जयंती पर बीएसपी प्रमुख मायावती "साम, दाम, दंड और भेद के हथकंडे से सावधान रहें और पार्टी के मूवमेंट को सफल बनाएं: मायावती"      दलितों के मसीहा कहे जाने वाले कांशीराम की 87वीं जयंती के मौके पर मायावती मीडिया के सामने मुखातिब हुईं। वही 2 पन्नों में लिखा भाषण लेकर, मीडिया के कैमरे ऑन होते ही उन्होंने इमला पढ़ना शुरू किया... इस दौरान उन्होंने बीएसपी कार्यकर्ताओं को विरोधी दलों के प्रपंच में ना फंसने की हिदायत दी उन्होंने कहा कि विपक्षी दल साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाएंगे लेकिन आप उनके झांसे में ना आएं। विपक्षी दलों ने हमेशा बीएसपी के साथ षडयंत्र किया है। "हम दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन करते हैं लेकिन फायदा दूसरे दल उठा ले जाते हैं। हमें गठबंधन का कोई फायदा नहीं पहुंचता। इसलिए बीएसपी ने फैसला किया है कि वो अपने बलबूते पर उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।" हालांकि चुनाव को लेकर उन्होंने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया, बस इतना जरूर कहा कि पार्टी बिना शोर-शराबे और दिखावे के चुनावों की तैयारी में जुटी है। जिसका अंदाजा आने वाले पंचायत चुनावों में ल...

आसमां से एक उल्का टूटी, यहां एक सितारा बुझ गया

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बॉलीवुड में इरफान जैसा कोई और नहीं न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर के चलते  मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन    एक ऐसा हरफनमौला कलाकार (वर्सेटाइल एक्टर) जो हर किरदार बड़े सहजता से जीता था। NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली) से निकलने के बाद बॉलीवुड में पैर जमाने के लिए लंबी जद्दोजहद की, तब जाकर कहीं फिल्मों ।में मुख्य भूमिकाएं मिली। उसके बाद एक के बाद ब्लॉक बस्टर फिल्में दी। इरफान की फिल्में हमेशा विषय प्रधान रहीं, लगभग हर फ़िल्म कोई ना कोई संदेश छोड़ती है. किसी कलाकर के लिये जिसका मायानगरी में कोई माई-बाप ना हो, उसका बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफ़र जरा भी आसान नहीं होता. नब्बे के दशक में #सलाम_बॉम्बे (1988) से बॉलीवुड के रूपहले पर्दे पर कदम रखा. 21 साल के इरफान ने इस फिल्म में एक लेटर राइटर का किरदार निभाया था. करियर की शुरुआत में बतौर सहायक अभिनेता कई फिल्में की, लेकिन इरफ़ान को असली पहचान 2002 के बाद से मिलनी शुरू हुई. #हासिल (2002), फुटपाथ (2003) मकबूल (2003), के बाद से तो इरफान को नजरअंदाज करना डायरेक्टर्स के लिए मुश्किल हो गया. उसके बाद से तो इरफ़ान को धड़ाधड़ फिल्म...

नमक हराम V/S नमक हलाल : पार्ट-१

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ये कहानी है नमक हलाल और नमक हरामों की, पहली कहानी  राजस्थान के सीकर की है। लॉकडाउन के दौरान पलसाना कस्बे के एक गांव में  गुजरात,  मध्य प्रदेश समेत कई स्कूल भवन की पेंटिंग करते मजदूर राज्यों से कुछ मजदूर लौट आए थे गांव वालों ने उन्हें गांव के  एक प्राथमिक स्कूल में आश्रय (क्वॉरेंटाइन में रखा) दे दिया।  मजदूरों ने देखा कि दो दशकों से स्कूल की पेंटिंग नहीं हुई है, साफ-सफाई भी नहीं हुई है तब उन मजदूरों ने सरपंच के सामने स्कूल की पेंटिंग करने का प्रस्ताव रखा। तुरंत ही पेंट, चूना, ब्रश इत्यादि का इंतजाम हुआ और उन मजदूरों ने अपने क्वॉरेंटाइन के दौरान स्कूल की शक्ल सूरत ही बदल दी। इसके लिए उन्होंने कोई मेहनताना नहीं लिया बल्कि सरपंच से कहा कि हम यहां पर हैं मुफ्त में खा रहे हैं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम कुछ न कुछ इस स्कूल को दें और इस तरह स्कूल के भवन की कायापलट हो गई।  इस कहानी का पहला पहलू हमें 'नमक का हक अदा करने' की सीख देता है। अब बात करते हैं दूसरे पहलू की जो इसके बिल्कुल उलट है..   हम सब जानते हैं कि देश में कुछ ऐसे नमक हराम और ...

ड्रैगन के मंसूबों पर भारत ने फेरा पानी

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सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में क्यों किया बदलाव? आज ये एक बड़ा सवाल आर्थिक समझ रखने वाले हम सभी भारतीयों के जेहन में है। क्या कोरोना संकट भारत समेत दुनिया के कई बड़े देशों को आर्थिक गुलामी की ओर धकेल रहा है? तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि, शातिर चीन कोरोना संकट का फायदा उठाकर भारत, अमेरिका और यूरोप के कई देशों की खराब अर्थव्यवस्था का जमकर फायदा उठा है। संकट की इस घड़ी में चीन इन देशों की खस्ताहाल कंपनियों में निवेश कर बड़ा हिस्सेदार बनता जा रहा है।  हाल में चीन के सेंट्रल बैंक, पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) ने भारत की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (HDFC) में 1.01 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। जिसके चलते HDFC में चीन की कुल हिस्सेदारी 1.71% के करीब हो गई है।      उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2019 से अप्रैल 2000 के दौरान भारत को चीन से 2.34 अरब डॉलर यानी 14,846 करोड़ रुपये के FDI मिले हैं। यानि चीन ने पिछले 5 महीनों में देश में 2.34 अरब डॉलर का निवेश किया है।...

रॉसोगोल्ला को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान..

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 रॉसोगोल्ला कोलकाता में रॉसोगोल्ला के 150 साल पूरे होने पर मनाया गया रॉसोगोल्ला दिवस..      भारत की GI कोर्ट में करीब ढ़ाई साल की लड़ाई लड़ने के बाद कोलकाता के रॉसोगोल्ला  को पिछले साल 14 नवम्बर को GI  (Geographical Identifiaction) टैग मिला था.. माना जाता है कि आज से 150 साल पहले यानि 1868 ई में बंगाल के नोबीन दास मोइरा ने इस मिठाई का आविष्कार किया था, जिसे उन्होंने दूध के छेने से बनाकर चाशनी में उबाला था, उसके बाद से रॉसोगोल्ला अपने अनूठे स्वाद की वजह से बंगाल के साथ-साथ पूरे देश और विदेश में मशहूर हो गया।    रॉसोगोल्ला केे आविष्कार का दावा कोलकाता का पड़ोसी राज्य उड़ीसा भी करता है, और उसने भी GI टैग के लिए आवेदन किया था। इसके पीछे उसके अपने तर्क और कहानियां हैं लेकिन रॉसोगोल्ला के आविष्कार और उत्त्पत्ति के अधिकार की लड़ाई वो हार चुका है और रॉसोगोल्ला को कोलाकाता की मिठाई के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है.. कोलकाता में 14 नवम्बर को 'रॉसोगोल्ला दिवस' के रूप में मनाया जाना, रॉसोगोल्ला को 'हेरिटेज स्वीट्स' का दर्जा दिए जान...

लौह पुरुष के सम्मान में 'स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी'..

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वो अकेले ही चले थे जानिब ए मंजिल मगर, रियासतें एक होती गई और हिन्दोस्तां बनता गया..  लौह पुरुष की जयंती पर उनकी विश्व में सर्वोच्च प्रतिमा का लोकार्पण कर देशवासियों ने सच्ची श्रद्धाजंलि दी है, ये विशालकाय प्रतिमा देश और दुनिया के लोगों को सरदार के लौह व्यक्तित्व की हमेशा याद दिलाती रहेगी, क्योंकि बारदोली सत्याग्रह में महिला एवं किसानों के  सशक्तिकरण की अलख जगाने वाले पटेल किसानों के सर्वमान्य सरदार बन गए.. उनका कहना था,     "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।"      तदुपरांत आजादी के बाद देशी रियासतों के एकीकरण का कार्य उन्होंने बखूबी निभाया और करीब 562 छोटी-बड़ी रियासतों को एक झंडे के नीचे लाकर खड़ा कर दिया... सरदार की बदौलत ही आज हम देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की बात करते हैं, अन्यथा आज भारत भूमि के अंदर ही कई स्थानों में जाने के लिए वीजा लेना पड़ता, काश जम्मू-कश्मीर मसले पर जवाहर लाल ने हस्ताक्षेप न किया होता, तो आ...

गुरू ब्रह्म गुरू विष्णु...

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  आज शिक्षक दिवस पर समझ नहीं आता किस गुरु को अपना आदर्श बताऊं..?   अब तक के अकादमिक सफर में शिक्षकों से मेरा हमेशा ही मतभेद रहा है। मेरा और मेरे गुरुओं के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे, इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं किसी गुरू को अपना आदर्श बता, गुरू की महिमा का बखान नहीं करूंगा, और न ही   'गुरू ब्रह्म गुरू विष्णु...' जैसी कपोल-कल्पित बात करूंगा, क्योंकि ये सर्व विदित है कि आज के गुरू-शिष्य सम्बन्ध अर्जुन-द्रोण वाले नहीं रह गए..  आज वैसे एकलव्य नहीं हैं जो सहर्ष अपना अंगूठा गुरू दक्षिणा में भेंट कर दें और न ही विश्वामित्र जैसे गुरू ही हैं, जो कर्ण जैसे सूतपुत्र को अपनी सभी गुप्त विद्याएं सिखाकर उसे तत्कालीन समय का सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर बना दें..     मैं 'वक्त' यानि समय को अपना सबसे बड़ा गुरु मानता हूँ, क्योंकि समय से बेहतर इस संसार में कोई दूसरा गुरु नहीं है.. समय ही है जो हमें सही-गलत अच्छे-बुरे, और अपने-परायों में अंतर करना सिखाता है। मेरा अपना खुद का तजुर्बा है.. 'जो सबक प्यार से समझ नही आता, वह समय की बिन आवाज़ लाठी से समझ आ जाता है..' ...