आसमां से एक उल्का टूटी, यहां एक सितारा बुझ गया


बॉलीवुड में इरफान जैसा कोई और नहीं
न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर के चलते
 मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन
  एक ऐसा हरफनमौला कलाकार (वर्सेटाइल एक्टर) जो हर किरदार बड़े सहजता से जीता था। NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली) से निकलने के बाद बॉलीवुड में पैर जमाने के लिए लंबी जद्दोजहद की, तब जाकर कहीं फिल्मों ।में मुख्य भूमिकाएं मिली। उसके बाद एक के बाद ब्लॉक बस्टर फिल्में दी। इरफान की फिल्में हमेशा विषय प्रधान रहीं, लगभग हर फ़िल्म कोई ना कोई संदेश छोड़ती है.
किसी कलाकर के लिये जिसका मायानगरी में कोई माई-बाप ना हो, उसका बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफ़र जरा भी आसान नहीं होता.
नब्बे के दशक में #सलाम_बॉम्बे (1988) से बॉलीवुड के रूपहले पर्दे पर कदम रखा. 21 साल के इरफान ने इस फिल्म में एक लेटर राइटर का किरदार निभाया था. करियर की शुरुआत में बतौर सहायक अभिनेता कई फिल्में की, लेकिन इरफ़ान को असली पहचान 2002 के बाद से मिलनी शुरू हुई. #हासिल (2002), फुटपाथ (2003) मकबूल (2003), के बाद से तो इरफान को नजरअंदाज करना डायरेक्टर्स के लिए मुश्किल हो गया.
उसके बाद से तो इरफ़ान को धड़ाधड़ फिल्में मिलना शुरू हो गई। फिल्में मिली तो ऐसे मिली कि हर किरदार को पर्दे पर जी लिया- फिर चाहे वो #पान_सिंह_तोमर, #हिंदी_मीडियम, #पीकू #स्लमडॉग_मिलेनियर, #लाइफ_ऑफ_पाई हो, #द_नेमसेक हो या फिर अभी हाल ही रिलीज हुई फ़िल्म #अंग्रेजी_मीडियम.
अभी 3 दिन पहले ही मैंने #अंग्रेजी_मीडियम देखी थी, इस फ़िल्म में इरफ़ान ने चंपकलाल बंसल यनि एक हलवाई का क़िरदार निभाया था, एक ऐसे पिता का रोल जो पत्नी की डेथ के बाद बेटी को मां-बाप दोनों का प्यार देता है, एक ऐसा जुनूनी बाप जो अपनी पत्नी के सपने ना पूरा कर पाने के अफसोस में बेटी के हर छोटे-बड़े सपने को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
जयपुर में गुजरे आपके बचपन को मैंने एशियन पेंट्स की सीरीज.. 'हर घर कुछ कहता है' में देखा है मैंने. अंग्रेजी मीडियम की शुरुआत की शूटिंग #उदयपुर में हुई है, उसके बाद की लंदन में. इस तरह आखिरी वक़्त में अपने घर से जुड़ी यादों को जीने का एक और मौका मिल होगा.
नवाबों के घराने से ताल्लुक रखने के बावजूद मध्यम वर्गीय परिवार में परवरिश हुई, आपकी शैतानियों के किस्से सुने हैं मैंने आपके के इंटरव्यूज में।
पतंगबाजी का शौक ऐसा कि इस उम्र तक दो-चार पेंच लड़ा ही लेते थे, लेकिन सांसों का मांझा ऊपरवाले ने ऐसा खींचा कि जिंदगी की पतंग हवा में लहरा गई।
इस बीमारी ने अंदर तक तोड़ दिया होगा ना, फिर भी फाइटर की तरह लड़ते रहे, और ख़ुदा ने अपने इस नेक बन्दे को माह- ए- रमज़ान में अपने पास बुला लिया।
#इरफ़ान भले ही अब इस दुनिया में नहीं हो, लेकिन आपके किरदार आने वाले कई दशकों तक हमारे जेहन में रहेंगे। एक ख़्वाहिश, आपसे मुलाकात की जो कि #IFFI_2017 में अधूरी रह गई थी, सोंचा था कभी ना कभी पूरी हो जाएगी, और तब भारतीय सिनेमा में योगदान में लिए आपका शुक्रिया अदा करूंगा.
खैर, हमारी हर ख्वाहिश पूरी कहां होती हैं, लेकिन आप जहां भी जिस दुनिया मे होना वहां ऐसे ही लोगों का मनोरंजन करते रहना, और संभव हो तो फिर से एक्टर बनकर ही धरती में आना।
इरफान के फ़िल्मी करियर का सफ़रनामा जल्द ही लेकर हाजिर होऊंगा, तब तक के लिए इरफ़ान की कुछ फिल्में देख डालिए।

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