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Showing posts from February, 2018

प्रिया प्रकाश वैरियर..'अ नेशनल क्रश'

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  प्रिया प्रकाश वैरियर  एक ऐसी वीडियो क्लिप, जिसने केरल की एक लड़की को देश भर के लड़कों का ख़्वाब बना दिया है। आखिर ऐसा क्या है उस 26 सेकेंड की वीडियो क्लिप में.? तो आपको बता दें कि उस क्लिप में नादानी, शोख़ी, मासूमियत, शरारत और मोहब्बत, ये सब कुछ था उस महज़ 26 सेकेंड में..        बाद में पत्रकारों ने इस बाबत जब उनसे इस क्लिप के बारे में सवाल पूंछे तो बड़ी सादगी से जवाब देते हुए प्रिया कहती हैं कि, "डायरेक्टर ने ऑन द स्पॉट बताया था कि ऐसा कुछ करना है और मुझे कहा गया कि क्यूट सा कुछ करना है। मैंने एक ट्राई मारा बस और एक ही शॉट में वो सीन ओके हो गया था। लेकिन मैंने सोचा नहीं था कि ये इतना वायरल हो जाएगा..'' बकौल प्रिया, ''इसके लिए मैंने कोई प्रैक्टिस नहीं की थी और जो हुआ वो ऑन द स्पॉट आ गया। शॉट के बाद सभी ने कहा था कि बढ़िया हो गया है लेकिन ये नहीं पता था कि ऐसा कुछ हो गया।       चलिए कोई बात नहीं ये प्रिया की आने वाली फिल्म 'Oru Aadar Love' के लिए उन्हें और उनके निर्माता-निर्देशक को जितनी पॉपुलरिटी की जरूरत थी वो रातोंरात उन्हें...

'वेलेंटाइन डे' की 'शिवरात्रि'..

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     हिंदू संसार का सबसे उत्सवधर्मी समाज है और हमें तो बस मौका चाहिए त्यौहार मनाने का। इतने त्योहार, कुछ आंचलिक, कुछ राष्ट्रीय और कुछ सार्वदेशिक तो इन पर एक वेलेंटाइन डे और सही।     अजीब दिन है आज, शिवरात्रि की पूजा कर सात्विक भाव धारण करें या प्रेमिका को पूजकर कामभाव, आज यह द्वंद प्रायः हर युवक-युवती के मन में होगा संभवतः। ऐसा इसलिये क्योंकि हमने कभी शिव को ध्यान से देखा ही नहीं है।      शिव संसार के अन्यतम और सहज मानवीय प्रेम के प्रतीक हैं। उनके प्रेम में राधा और कृष्ण की दिव्यता के विपरीत सहज मानवीय सरलता है जो बेहद आकर्षक है। एक शिव है जो अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष के द्वारा आमंत्रित न किए जाने पर आत्मसम्मान वश यज्ञ में शामिल नहीं हुए, पत्नी सती के हठ के कारण उनका मान रखने के लिए वहां जाते हैं और अपने अपमान होने पर भी शांत रहते हैं। एक शिव हैं जो सती की मृत्यु पर संसार भर को आंसुओं में डूबा देने वाला विलाप करते हैं और उनकी जली हुई मृत देह को बांहों में समेटे विक्षिप्त से हो जाते हैं।        वही शिव सोलह वर्ष की तपस्य...

'सीता' नहीं बल्कि 'शूर्पनखा' और 'ताड़का' हैं आज की स्त्रियों की आदर्श..

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     बीते दिनों संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के दौरान कांग्रेसी सदस्या रेणुका चौधरी की हंसी महत्वपूर्ण घटना के रूप में सामने आयी। यह पूरी घटना केवल राजनीतिक घटना नहीं बल्कि स्त्री विमर्श से जुड़ा महत्वपूर्ण सवाल है।    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों-इशारों में ही रेणुका चौधरी की हंसी की तुलना शूर्पनखा या ताड़का की हंसी से कर दी। रेणुका चौधरी ने इस तुलना से खुद को अपमानित महसूस कर प्रधानमंत्री का विरोध किया। सोशल मीडिया से लेकर तमाम मीडिया चैनलों में इस बात की गहमागहमी बनी रही और पीएम को ट्रोल बनाया गया।      इस प्रसंग में रेणुका चौधरी सहित हर भारतीय स्त्री को खुद से एक प्रश्न जरूर पूछना चाहिए कि वह सीता से अपनी तुलना करना पसंद करती हैं या शूर्पनखा और ताड़का से?  मेरी राय यह है कि भारतीय स्त्री को सीता की जगह शूर्पनखा और ताड़का को अपनी आदर्श नायिका मानना चाहिए। जरा सीता से शूर्पनखा और ताड़का की तुलना कर के देखें। सीता जन्म से ही अपने पिता के अधीन हैं, एवं विवाह  के बाद अपने पति के। यही तो हिंदू शास्त्रों का आदेश ...

इंसां के अंदर का मरता इंसां...

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     आज जिंदगी मौत से जूझते इलाहाबाद विश्विद्यालय के लॉ छात्र दिलीप सरोज ने दम तोड़ दिया और छोड़ गया अपने पीछे कई सवाल.. हर इंसान कहीं न कहीं अपने अंदर एक जानवर को पाले हुए है, बस अंतर इतना है किसी के अंदर का जानवर कम तबाही मचाता है और  किसी के अंदर का ज्यादा..    शहर के कटरा इलाके में स्थित कालिका होटल में शुक्रवार की रात जरा से विवाद के बाद हुई लॉ स्टूडेंट की हत्या के जितने कसूरवार वो हत्यारें हैं उतने ही जिम्मेदार इस घटना को राजनीतिक और जातिगत रूप देने वाले लोग भी हैं, क्योकिं हत्या एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर की गयी थी, उसकी जाति या मजहब को ध्यान में रखकर नहीं।   सत्ता और शक्ति के मद (नशे) में चूर व्यक्तियों के लिए इंसान की जान गाजर, मूली से ज्यादा कुछ नहीं होती, शायद तभी तो छोटी-छोटी सी बात के लिए हत्या करने में न तो ऐसे लोगों को सकुचाहट होती है और न ही समाज या पुलिस-प्रशासन कोई डर. ऐसे बेखौफ दंरिदे समाज के प्रत्येक वर्ग, धर्म, जाति और संप्रदाय में पाए जाते हैं। बस अंतर इतना है कि किसी मामले जोर-शोर से उछाल कर बड़ा मुद्दा बना दिया ...

'मेरी अवंतिका' का साइड इफ़ेक्ट..

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अभिधा शर्मा का उपन्यास : मेरी अवन्तिका       आज शाम से मन बहुत व्यथित है, कारण जानने की कोशिश की तो दिमाग ने कहा, 'क्या चूतियापा है ये, बेवजह का ड्रामा कर रहे हो बस और कुछ नहीं ..' वजह कुछ भी हो लेकिन मन भीतर से ख़ुशी नहीं म्हसूस कर पा रहा। शायद कल रात भर जागने की वजह से ऐसा हो या फिर उस उपन्यास का मेरे ज़ेहन में इस कदर उतर जाना हो, जैसे उपन्यास की सारी घटनाएं मेरे साथ ही घटित हुई हों। इस उपन्यास के साथ मेरे द्वारा बिताए अनवरत सोलह घण्टों ने मुझे यह एहसास दिलाया जैसे कि मैं उस उपन्यास का मुख्य नायक पीयूष हूँ। इस उपन्यास से मेरे जुड़ाव का कारण शायद इसलिए भी हैं क्योंकि मेरे साथ भी जिंदगी ने पीयूष की तरह ऐसे भद्दे मज़ाक कई मर्तबा किए हैं।      लेकिन उस उपन्यास का अंत मैं मेरे साथ घटित होने की कल्पना मात्र से कांप जाता हूँ। जानता हूँ जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, वो कभी भी किसी के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक कर सकती है, फिर भी मैं उस कबूतर की तरह अपनी आँखे मूंदे हुए हूँ, जिसको शिकारी बस अपना शिकार बनाने वाला ही होता है और आँख मूंदकर वो कबूतर ये सोंचता है कि शिकारी उसे ...

4×8 की बरसाती वाला शहर..

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हर शहर के किसी कोने पर बसता है 4×8 की बरसाती वाला शहर. जिसे हम #झुग्गी #मलिन_बस्ती या फिर #स्लम के नाम  से जानते हैं. यह शहर हमारी नजरों से दूर, शहर की ऊँची-ऊँची इमारतों के पीछे दुबका-सहमा कहीं छुपा हुआ होता है. आम तौर पर हमारी नजरें यहाँ तक नहीं पहुँचती, और अगर गलती से कभी इस शहर के पास से गुजरना हो जाए तो स्वाभाविक ही हमारे मुंह से छि...ई..ई... की ध्वनि निकल पडती है और हमारा मन घृणा से भर उठता है. हमारे हाथ स्वतः ही रूमाल की और बढ़ जाते हैं और अनायास ही हम इस शहर से अपनी नजरें फेर लेते हैं। यह सब एक आम मानव का स्वभाव ही है जो हमें ऐसा करने पर मजबूर करता है, क्योंकि हम सिर्फ अच्छा देखना, सुनना और चखना पसंद करते हैं. हम ऐसे परिवेश में पलें-बढे हैं जहाँ गन्दगी को देखकर हमें मुंह पर रूमाल रख, मुंह फेर लेना ही सिखाया गया है न कि जिन्दगीं के इस स्याह पक्ष को देखना, समझना, रूबरू होना और इससे झूझना। लेकिन बदहाली की जिन्दगी कैसी होती हैं, यहाँ आकर पता चलता है. पेप्सी-कोला की बोतलों से प्यास बुझाने वाले हम लोग, बूँद-बूँद पानी को संघर्ष करते लोगों के लिए पानी की कीमत को क्या जानेगें? घर म...