'वेलेंटाइन डे' की 'शिवरात्रि'..
हिंदू संसार का सबसे उत्सवधर्मी समाज है और हमें तो बस मौका चाहिए त्यौहार मनाने का। इतने त्योहार, कुछ आंचलिक, कुछ राष्ट्रीय और कुछ सार्वदेशिक तो इन पर एक वेलेंटाइन डे और सही।
अजीब दिन है आज, शिवरात्रि की पूजा कर सात्विक भाव धारण करें या प्रेमिका को पूजकर कामभाव, आज यह द्वंद प्रायः हर युवक-युवती के मन में होगा संभवतः।
ऐसा इसलिये क्योंकि हमने कभी शिव को ध्यान से देखा ही नहीं है।
शिव संसार के अन्यतम और सहज मानवीय प्रेम के प्रतीक हैं। उनके प्रेम में राधा और कृष्ण की दिव्यता के विपरीत सहज मानवीय सरलता है जो बेहद आकर्षक है।
एक शिव है जो अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष के द्वारा आमंत्रित न किए जाने पर आत्मसम्मान वश यज्ञ में शामिल नहीं हुए, पत्नी सती के हठ के कारण उनका मान रखने के लिए वहां जाते हैं और अपने अपमान होने पर भी शांत रहते हैं। एक शिव हैं जो सती की मृत्यु पर संसार भर को आंसुओं में डूबा देने वाला विलाप करते हैं और उनकी जली हुई मृत देह को बांहों में समेटे विक्षिप्त से हो जाते हैं।
वही शिव सोलह वर्ष की तपस्या के बाद भी किशोरी पार्वती में कामासक्त होकर लज्जित हो जाते हैं। एक शिव काम का दहन कर देते हैं। वही शिव पार्वती से विवाह कर कामक्रीड़ा में संसार को भुला देते हैं। एक शिव स्त्रीप्रेम में अर्धनारीश्वर हो जाते हैं। वही शिव, पत्नी पार्वती की ही उपस्थिति में मोहिनी के रूप में इस कदर वासना पीड़ित हो जाते हैं कि उसे बलात हासिल करने के लिये दौड़ पड़ते हैं।
यही हैं शिव, असाधारण शक्तियों से युक्त होने पर भी बच्चे की तरह निःश्छल, मासूम और पवित्र। तभी तो समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को सृष्टि के कल्याणार्थ बेहिचक पी जाते हैं, जबकि उसके ताप से उनके कंठ में जलन और उनकी देह नीली पड़ जाती है।
उन्हें भोलेनाथ यूँ ही तो नहीं कहा गया है। उनका यह रूप ही मुझे प्रिय है, असाधारण होते हुये भी मानवीय और यही सरलता उन्हें देवता ही नहीं ईश्वर बनाती है क्योंकि मेरा ईश्वर कोई रोशनी का पहाड़ नहीं हो सकता, मेरा ईश्वर मेरी गलतियों का दंड देना वाला न्यायधीश नहीं हो सकता, मेरा ईश्वर कोई तानाशाह नहीं हो सकता।
मेरा ईश्वर वही हो सकता है जो मुझे बताये कि देखो मैं भी तुम्हारी तरह हूँ मेरे अंदर भी वासना है, प्रेम है, क्रोध है, करुणा है, होंठों पर हंसी है, आँसू हैं, संगीत है, विनाश का तांडव है। मैं भी तुम्हारी तरह रुद्र भी हूँ और शांत शंकर भी। देखो मैं तुम्हारी ही तरह हूँ...मैं शिव हूँ...
मैंने भी ऐसे ही शिव को जाना है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ जिससे लिपटकर रो सकता हूँ, जिससे झगड़ सकता हूँ, मनचाही चीज मांग सकता हूँ और ना मिलने पर रूठकर उनसे अनबोला कर सकता हूँ। शिव मुझे आतंकित नहीं करते क्योंकि वे कभी भी अपने ईश्वरत्व की धौंस मुझ पर नहीं जमाते। मैं जानता हूँ वे भी मेरे ही जैसे हैं इसीलिये तो वे मेरे ईश्वर हैं -- देवों के देव महादेव।
आज मानवीय प्रेम के इस दिव्य प्रतीक की विवाह स्मृति के दिन पड़ा है वैलेंटाइन डे अतः सभी प्रेमी प्रेमिकाओं को वैलेंटाइन डे की शुभकामनायें देने में मुझे कोई हिचक या शर्मिंदगी नहीं है ।
इसलिये.....प्रिंसेस को हैप्पी वैलेंटाइन डे और शिवभक्तों को महाशिवरात्रि की शुभकामनायें...
अजीब दिन है आज, शिवरात्रि की पूजा कर सात्विक भाव धारण करें या प्रेमिका को पूजकर कामभाव, आज यह द्वंद प्रायः हर युवक-युवती के मन में होगा संभवतः।
ऐसा इसलिये क्योंकि हमने कभी शिव को ध्यान से देखा ही नहीं है।
शिव संसार के अन्यतम और सहज मानवीय प्रेम के प्रतीक हैं। उनके प्रेम में राधा और कृष्ण की दिव्यता के विपरीत सहज मानवीय सरलता है जो बेहद आकर्षक है।
एक शिव है जो अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष के द्वारा आमंत्रित न किए जाने पर आत्मसम्मान वश यज्ञ में शामिल नहीं हुए, पत्नी सती के हठ के कारण उनका मान रखने के लिए वहां जाते हैं और अपने अपमान होने पर भी शांत रहते हैं। एक शिव हैं जो सती की मृत्यु पर संसार भर को आंसुओं में डूबा देने वाला विलाप करते हैं और उनकी जली हुई मृत देह को बांहों में समेटे विक्षिप्त से हो जाते हैं।
वही शिव सोलह वर्ष की तपस्या के बाद भी किशोरी पार्वती में कामासक्त होकर लज्जित हो जाते हैं। एक शिव काम का दहन कर देते हैं। वही शिव पार्वती से विवाह कर कामक्रीड़ा में संसार को भुला देते हैं। एक शिव स्त्रीप्रेम में अर्धनारीश्वर हो जाते हैं। वही शिव, पत्नी पार्वती की ही उपस्थिति में मोहिनी के रूप में इस कदर वासना पीड़ित हो जाते हैं कि उसे बलात हासिल करने के लिये दौड़ पड़ते हैं।
यही हैं शिव, असाधारण शक्तियों से युक्त होने पर भी बच्चे की तरह निःश्छल, मासूम और पवित्र। तभी तो समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को सृष्टि के कल्याणार्थ बेहिचक पी जाते हैं, जबकि उसके ताप से उनके कंठ में जलन और उनकी देह नीली पड़ जाती है।
उन्हें भोलेनाथ यूँ ही तो नहीं कहा गया है। उनका यह रूप ही मुझे प्रिय है, असाधारण होते हुये भी मानवीय और यही सरलता उन्हें देवता ही नहीं ईश्वर बनाती है क्योंकि मेरा ईश्वर कोई रोशनी का पहाड़ नहीं हो सकता, मेरा ईश्वर मेरी गलतियों का दंड देना वाला न्यायधीश नहीं हो सकता, मेरा ईश्वर कोई तानाशाह नहीं हो सकता।
मेरा ईश्वर वही हो सकता है जो मुझे बताये कि देखो मैं भी तुम्हारी तरह हूँ मेरे अंदर भी वासना है, प्रेम है, क्रोध है, करुणा है, होंठों पर हंसी है, आँसू हैं, संगीत है, विनाश का तांडव है। मैं भी तुम्हारी तरह रुद्र भी हूँ और शांत शंकर भी। देखो मैं तुम्हारी ही तरह हूँ...मैं शिव हूँ...
मैंने भी ऐसे ही शिव को जाना है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ जिससे लिपटकर रो सकता हूँ, जिससे झगड़ सकता हूँ, मनचाही चीज मांग सकता हूँ और ना मिलने पर रूठकर उनसे अनबोला कर सकता हूँ। शिव मुझे आतंकित नहीं करते क्योंकि वे कभी भी अपने ईश्वरत्व की धौंस मुझ पर नहीं जमाते। मैं जानता हूँ वे भी मेरे ही जैसे हैं इसीलिये तो वे मेरे ईश्वर हैं -- देवों के देव महादेव।
आज मानवीय प्रेम के इस दिव्य प्रतीक की विवाह स्मृति के दिन पड़ा है वैलेंटाइन डे अतः सभी प्रेमी प्रेमिकाओं को वैलेंटाइन डे की शुभकामनायें देने में मुझे कोई हिचक या शर्मिंदगी नहीं है ।
इसलिये.....प्रिंसेस को हैप्पी वैलेंटाइन डे और शिवभक्तों को महाशिवरात्रि की शुभकामनायें...
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