'मेरी अवंतिका' का साइड इफ़ेक्ट..
अभिधा शर्मा का उपन्यास : मेरी अवन्तिका आज शाम से मन बहुत व्यथित है, कारण जानने की कोशिश की तो दिमाग ने कहा, 'क्या चूतियापा है ये, बेवजह का ड्रामा कर रहे हो बस और कुछ नहीं ..' वजह कुछ भी हो लेकिन मन भीतर से ख़ुशी नहीं म्हसूस कर पा रहा। शायद कल रात भर जागने की वजह से ऐसा हो या फिर उस उपन्यास का मेरे ज़ेहन में इस कदर उतर जाना हो, जैसे उपन्यास की सारी घटनाएं मेरे साथ ही घटित हुई हों। इस उपन्यास के साथ मेरे द्वारा बिताए अनवरत सोलह घण्टों ने मुझे यह एहसास दिलाया जैसे कि मैं उस उपन्यास का मुख्य नायक पीयूष हूँ। इस उपन्यास से मेरे जुड़ाव का कारण शायद इसलिए भी हैं क्योंकि मेरे साथ भी जिंदगी ने पीयूष की तरह ऐसे भद्दे मज़ाक कई मर्तबा किए हैं। लेकिन उस उपन्यास का अंत मैं मेरे साथ घटित होने की कल्पना मात्र से कांप जाता हूँ। जानता हूँ जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, वो कभी भी किसी के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक कर सकती है, फिर भी मैं उस कबूतर की तरह अपनी आँखे मूंदे हुए हूँ, जिसको शिकारी बस अपना शिकार बनाने वाला ही होता है और आँख मूंदकर वो कबूतर ये सोंचता है कि शिकारी उसे ...
Comments
Post a Comment