रेहड़ी वालों पर नगर निगम का कहर..
नगर निगम का अतिक्रमण निरोधी दस्ता इस समय शहर भर में
सक्रिय है| ये दस्ता शहर में रोज किसी न किसी इलाकें आ धमकता है,
फिर आ जाती है रोड किनारे अस्थायी ठेला और रेहड़ी लगाने वालों की शामत| हाईकोर्ट ने पूरे शहर को अतिक्रमण मुक्त कराने का आदेश दे रखा है| इसके बाद भी पुराना शहर हो या फिर नए शहर का एरिया, इनक्रोचमेंट जस का तस कायम है| इससे कई सड़कों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है. पुराने शहर को इस स्थिति से बाहर निकालने की जिम्मेदारी न तो नगर निगम उठाने को तैयार है और न ही एडीए व पुलिस|
इनक्रोचमेंट के लिए पटरी के दुकानदार कम, बड़े दुकानदार ज्यादा जिम्मेदार हैं| स्थायी दुकान होने के बाद भी दुकान के अंदर भरे सामान से ज्यादा माल रोड पर रख देते हैं| दुकान को रोड या फिर पटरी तक लगा देते हैं| जानसेनगंज, घंटाघर, चौक, लोकनाथ, बांसमंडी, बहादुरगंज, मुट्ठीगंज, कटरा, न्यू कटरा, कचहरी रोड, करेली आदि एरिया में ऐसा बहुतायत देखने को मिलेगा. कोढ़ में खाज, इसके आगे ठेले वाले दुकान लगा देते हैं| इससे वर्किंग आवर्स में इन रोड पर पैदल चलना ही सबसे बेहतर विकल्प रह जाता है|
इन लोगों ने अपने-अपने घरों में रिहायशी इमारत के अलावा अलग दुकान भी बना रखी है| नियमतः इन्हें अपने भवन के नक्शे के अनुरूप दुकान चलाने की अनुमति नहीं है, इसके बावजूद ये रिहायशी मकानों में धडल्ले से बिना किसी रजिस्ट्रेशन के दुकान चला रहें हैं| इन भवनों में बिना किसी फ़ूड लाइसेंस के दैनिक उपभोग की सभी वस्तुओं से लेकर खाने-पीने की सभी चीजें और चाट-समोसे की दुकानें चल रहीं हैं| कई इलाकों में सुरक्षा और जल खपत के सरकारी नियमों को ताक में रखकर अवैध आरओ पम्पस के द्वारा पानी की बॉटलिंग की जा रही है तो कहीं चोरी से बड़े सिलेंडर से गैस| इन पर न तो कोई सरकारी कार्यवाही होती है और न ही कोई जुर्माना वसूला जाता है| प्रशासन के कोप का भाजन तो सडक के किनारे रेहड़ी (ठेले) में फल, सब्जी और अन्य समान बेचने वाले ही आसानी से होते हैं|
खेती-किसानी में जीतोड़ मेहनत के बावजूद ये लोग अपने साल भर की मेहनत और खेती की लागत तक नहीं निकाल पाते| मौसम की मार और सरकारी मदद न मिलने से हताश ये लोग अपने परिवार का पेट पालने के लिए शहरों में रोजगार तलाशने आ पहुंचते हैं| गरीबी और बदहाली से तंग आकर गांवों को छोड़ शहरों में आ बसे इन लोगों की जीविका का मुख्य साधन या तो ये ठेले या रेहड़ी है या फिर दिहाड़ी मजदूरी| ज्यादा पढ़े लिखे न होने की वजह से इन्हें यहाँ मासिक तनख्वाह पर कोई छोटी-मोटी नौकरी भी जल्दी नहीं मिल पाती| मजबूरीवश सड़क किनारे इन्हें ठेला या रेहड़ी लगाकर अपना गुजारा-बसेरा करना पड़ता है| कई बार प्रशासन द्वारा इनके ठेले तोड़ दिए जाते हैं और इनसे जुर्माने के एवज में धन की उगाही की जाती है|
प्रशासन की सख्ती या फिर नगर निगम द्वारा इनके
ठेले आदि जब्त कर लिए जाने के कारण दो-चार दिनों में ही इन ठेला या रेहड़ी लगाने वाले
गरीबों की कमर टूट जाती है| ऐसे में ये गरीब अपना और अपने परिवार का पेट बड़ी
मुश्किलों में पाल पाते हैं| अपनी रोजी-रोटी को संकट से बचाने के लिए मजबूरीवश ये
लोग प्रशासन की सभी जायज और नाजायाज मांगों को मान लेते हैं| इस तरह इन गरीबों पर प्रशासन का कहर बदस्तूर जारी है| हर साल कुंभ मेले के नाम पर या शहर में जाम की समस्या से त्रस्त हो प्रशासन इनके ठेलों को कब्जे में ले लेता है या फिर इके ठेलों को तोड़ कर सरकारी आदेश की खानापूर्ति कर लेता है| इन सबके बावजूद शहर को आज तक जाम एवं अतिक्रमण से स्थाई तौर पर मुक्ति नहीं मिल पाई है और पनिकट भविष्य में मिलने की कोई गुंजाईश भी दिखाई नहीं दे रही|
इनक्रोचमेंट के लिए पटरी के दुकानदार कम, बड़े दुकानदार ज्यादा जिम्मेदार हैं| स्थायी दुकान होने के बाद भी दुकान के अंदर भरे सामान से ज्यादा माल रोड पर रख देते हैं| दुकान को रोड या फिर पटरी तक लगा देते हैं| जानसेनगंज, घंटाघर, चौक, लोकनाथ, बांसमंडी, बहादुरगंज, मुट्ठीगंज, कटरा, न्यू कटरा, कचहरी रोड, करेली आदि एरिया में ऐसा बहुतायत देखने को मिलेगा. कोढ़ में खाज, इसके आगे ठेले वाले दुकान लगा देते हैं| इससे वर्किंग आवर्स में इन रोड पर पैदल चलना ही सबसे बेहतर विकल्प रह जाता है|
इन लोगों ने अपने-अपने घरों में रिहायशी इमारत के अलावा अलग दुकान भी बना रखी है| नियमतः इन्हें अपने भवन के नक्शे के अनुरूप दुकान चलाने की अनुमति नहीं है, इसके बावजूद ये रिहायशी मकानों में धडल्ले से बिना किसी रजिस्ट्रेशन के दुकान चला रहें हैं| इन भवनों में बिना किसी फ़ूड लाइसेंस के दैनिक उपभोग की सभी वस्तुओं से लेकर खाने-पीने की सभी चीजें और चाट-समोसे की दुकानें चल रहीं हैं| कई इलाकों में सुरक्षा और जल खपत के सरकारी नियमों को ताक में रखकर अवैध आरओ पम्पस के द्वारा पानी की बॉटलिंग की जा रही है तो कहीं चोरी से बड़े सिलेंडर से गैस| इन पर न तो कोई सरकारी कार्यवाही होती है और न ही कोई जुर्माना वसूला जाता है| प्रशासन के कोप का भाजन तो सडक के किनारे रेहड़ी (ठेले) में फल, सब्जी और अन्य समान बेचने वाले ही आसानी से होते हैं|
खेती-किसानी में जीतोड़ मेहनत के बावजूद ये लोग अपने साल भर की मेहनत और खेती की लागत तक नहीं निकाल पाते| मौसम की मार और सरकारी मदद न मिलने से हताश ये लोग अपने परिवार का पेट पालने के लिए शहरों में रोजगार तलाशने आ पहुंचते हैं| गरीबी और बदहाली से तंग आकर गांवों को छोड़ शहरों में आ बसे इन लोगों की जीविका का मुख्य साधन या तो ये ठेले या रेहड़ी है या फिर दिहाड़ी मजदूरी| ज्यादा पढ़े लिखे न होने की वजह से इन्हें यहाँ मासिक तनख्वाह पर कोई छोटी-मोटी नौकरी भी जल्दी नहीं मिल पाती| मजबूरीवश सड़क किनारे इन्हें ठेला या रेहड़ी लगाकर अपना गुजारा-बसेरा करना पड़ता है| कई बार प्रशासन द्वारा इनके ठेले तोड़ दिए जाते हैं और इनसे जुर्माने के एवज में धन की उगाही की जाती है|
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लोकसेवा आयोग के पास अतिक्रमण हटाता नगर निगम का दस्ता |
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