'मेरी अवंतिका' का साइड इफ़ेक्ट..
![]() |
अभिधा शर्मा का उपन्यास : मेरी अवन्तिका |
आज शाम से मन बहुत व्यथित है, कारण जानने की कोशिश की तो दिमाग ने कहा, 'क्या चूतियापा है ये, बेवजह का ड्रामा कर रहे हो बस और कुछ नहीं ..'
वजह कुछ भी हो लेकिन मन भीतर से ख़ुशी नहीं म्हसूस कर पा रहा। शायद कल रात भर जागने की वजह से ऐसा हो या फिर उस उपन्यास का मेरे ज़ेहन में इस कदर उतर जाना हो, जैसे उपन्यास की सारी घटनाएं मेरे साथ ही घटित हुई हों। इस उपन्यास के साथ मेरे द्वारा बिताए अनवरत सोलह घण्टों ने मुझे यह एहसास दिलाया जैसे कि मैं उस उपन्यास का मुख्य नायक पीयूष हूँ। इस उपन्यास से मेरे जुड़ाव का कारण शायद इसलिए भी हैं क्योंकि मेरे साथ भी जिंदगी ने पीयूष की तरह ऐसे भद्दे मज़ाक कई मर्तबा किए हैं।
लेकिन उस उपन्यास का अंत मैं मेरे साथ घटित होने की कल्पना मात्र से कांप जाता हूँ। जानता हूँ जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, वो कभी भी किसी के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक कर सकती है, फिर भी मैं उस कबूतर की तरह अपनी आँखे मूंदे हुए हूँ, जिसको शिकारी बस अपना शिकार बनाने वाला ही होता है और आँख मूंदकर वो कबूतर ये सोंचता है कि शिकारी उसे नहीं देख रहा। खैर जो भी हो मैं उस उपन्यास की नायिका अवंतिका की तरह अपने जीवनसाथी को इस तरह दूर नहीं जाने देना चाहता। जबकि मैं ये भली भांति जानता हूँ कि ये सब नासमझी भरे और बचकाने ख्याल हैं क्योंकि हानि, लाभ जीवन-मरण, यश-अपयश ये सब तो विधाता के हाथ में है, और हम सब उसकी कठपुतलियां भर हैं, फिर भी मैं अल्पज्ञ और अज्ञानी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इस अटल सत्य को झुठलाने की कोशिश कर रहा हूँ।
मेरे हृदय-सागर में उठ रहे भावनाओं का ज्वार थमने का नाम ही नहीं ले रहा। इन भावनाओं ने मेरे अंतर्मन में तूफ़ान मचा रखा है। न जाने कब ये भावनाओं का ज्वार उतरेगा और मुझे अपनी वास्तविक दुनिया के किनारे फेंक देगा, ताकि मैं जीवन की वास्तविकता को स्वीकार सकूं।
आज मैंने एक बार पुनः यह मान लिया है कि साहित्य जगत में इतनी ताकत और लेखक की लेखनी में इतनी कूवत है जो आपको अपनी आभासी दुनिया में गोते लगाने को मजबूर कर देती है, तो कभी भावनाओं के भंवर में हमें भटकाकर डुबो देती है।
कभी जीवन की भागदौड़ से फुर्सत मिले तो जरूर पढ़िए ऐसी रचनाओं को, जिनमें हम में से ही किसी एक व्यक्ति का जीवन चित्र उकेर कर रख दिया हो साहित्यकार ने अपनी लेखनी से। हमारे हिंदी साहित्य में तो ऐसे तमाम महान साहित्यकार मौजूद हैं जिनकी सशक्त लेखनी हमें उनके आभासी साहित्य लोक में बरबस ही खींच ले जाती है और हम अनायास ही उस साहित्य से अपना भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने लगते हैं एवं हमारे अंतर्मन में विभिन्न आवेग एवं मनोवेग संचारित होने लगते हैं।
सही मानिए तो जब तक साहित्य से हमारा जुड़ाव इस हद तक न हो जाए, तब तक ये मानना बेमानी होगा कि हमने फला लेखक अथवा साहित्यकार को संजीदगी से पढ़ा है अथवा जाना है। यदि किसी साहित्य को जीना ही है तो उसे शीशे की तरह अपने दिलो-दिमाग में उतार लेना ही उस साहित्यकार को उसकी रचना (कृति) की सही कीमत अदा करना है, नहीं तो अपनी लाइब्रेरी में सजाने के लिए खरीदते रहिए तमाम साहित्यकारों की ढेरों कृतियाँ और बघारते रहिए इस बात की शेखी कि हमाऱी लाइब्रेरी में इतने सारे लेखकों की इतनी सारी रचनाएं मौजूद हैं। लेकिन ये किसी भी साहित्यकार के साथ या उसकी रचना (कृति) के साथ न्याय नहीं हैं क्योंकि साहित्यकार पाठकों का प्रेमी होता है, न कि उसकी कृति को लाइब्रेरी में करीने से संजोने वालों का...
बहुत बहुत आभार अमित जी...
ReplyDeleteआपकी पीड़ा समझ सकती हूँ,इसे लिखने के बाद इससे बाहर आने में मुझे छः महीने लग गए थे...
Mam pls batayenge aapki avantika ke aage ka part aap kab likhenge ya iska edition online milega kya pls mujhe aapki avantika milegi
DeleteVery nice story it's heart touching madam ji I also read your other stories like canvas per bikhre yadon ke rung.
ReplyDeleteMam ma khud isa padhna ka baad issa nikal nahi pa raha hu
ReplyDeleteThankyou mam bauht hi sundar likha apna..
शब्द नहीं प्रशंसा के
ReplyDeleteIt's true mene khud ise 3 baar pada aur ab tk nikal nhi payi hu isse
ReplyDeleteमहोदया आपका हृदय से कोटि कोटि धन्यवाद जब मैंने यह उपन्यास पड़ा तो केवल शीतकालीन अवकाश को बिताने के हिसाब से पड़ा क्योंकि उस समय में अपने गांव में था तो पढ़ाई लिखा है कुछ कर नहीं रहा था गांव में इंजॉय करने के उद्देश्य से मुझे यह कृति कहीं प्राप्त हुई तो मैंने इसे पढ़ना प्रारंभ किया
ReplyDeleteपरंतु जब मैं इसे पढ़ने लगा तो अपने आप ही ऐसा जुड़ाव इस उपन्यास से हो गया की मैं बस अकेला रहना और केवल इसी कृति को पढ़ना यही मुझे अच्छा लगने लगा और यही मेरी दिनचर्या बन गई लगने लगा कि मैं इस उपन्यास का एक पात्र हूं जब मैं नहीं अवंतिका के संघर्ष को देखा समझा और जाना तो मेरा ह्रदय रो पड़ता परंतु मुझे उस पर करोगी होता था जब मैं इसे पढ़ता रहता तो यह भी सोचता था कि कहीं यह समाप्त ना हो जाए क्योंकि मैं तो चाहता था कि यह बस न्यू ही चलता रहे यह कृति कभी समाप्त ही ना हो मैं इसे दोबारा पढ़ना चाहता हूं परंतु जब कभी इसे पढ़ने के बारे में सोचता हूं तो ह्रदय कांप उठता है क्योंकि उपन्यास के अंतिम पड़ाव में जब अवंतिका के साथ जो घटना होती है उसे मेरा हृदय अभी तक स्वीकार ही नहीं कर पाया है इसी घटना को सोच सोच कर मैं दुखी होता हूं और इस उपन्यास को दोबारा पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं
मैं संस्कृत का विद्यार्थी हूं मैंने संस्कृत के भी महाकाव्य नाटक पड़े हैं उनमें मेरा सर्वाधिक प्रिय नाटक महाकवि कालिदास द्वारा विरचित अभिज्ञान शकुंतलम है इस नाटक के बाद में यदि मेरी कोई प्रिय कृति रही है तो वह यह उपन्यास
Meri e Avantika
मैं अभी भी जब कभी अकेला होता हूं तो मुझे इस उपन्यास के सारे दृश्य सिमरन को आते हैं और मैं अवंतिका के आसपास की दुनिया में विचरण करने लगता हूं परंतु जब मुझे उपन्यास के अंत कि वह दुर्घटना याद आती है तो मैं इस उपन्यास से दूर भागने का प्रयास करता हूं परंतु यह हो नहीं पाता अभी भी इसे में मेरे ह्रदय से निकाल नहीं पा रहा हूं