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Showing posts from May, 2018

गर्मी का फ़न, आम पना के संग..

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      बसंत के आते ही आम के पेड़ों पर बौर लगना शुरू हो जाती है| बौरों से लदे आम के पेड़ को देखकर गाँव के हरिया काका, दीनू चाचा, छोट्टन काका जैसे तमाम अनुभवी आदमी कयास लगाने शुरू कर देते हैं कि इस बार अमराई में आम कितना फरेगा| लेकिन मन में चिंता भी होती है, यह चिंता होती है असमय आने वाली आंधी की| अगर ये बैरन आंधी न आये तो इस बार आम खूब खाने और बेंचने को मिलेंगे| ऐसा अनुमान हर आम के बगीचे यानि हर अमराई वाला करता है| लेकिन होता वही है जो कुदरत चाहती है| इस बार जेठ ने आते ही लू के ठेपेदों की जगह अमराइयों को एक-दो तगड़ी आंधी का झटका दे ही दिया, बेचारी अमराइयाँ आंधी के इन थपेड़ों को न सह पाईं और जमीन में मुंह के बल चित्त हो गईं| लू रहेगी दूर , गर्मीं में आमपना पिएं भरपूर      खैर जो भी हो आम जन के मन में गर्मी शुरू होते ही आम की खटास और मिठास का स्वाद घुलने लगता है, और घुले भी क्यों न, क्योंकि आम फलों का राजा जो ठहरा | एक राजा की भांति उसे अपने चाहने वालों को अपने रस से सरोबोर भी तो करना है| इसलिए अमराइयों में आम जी-भर के फरता है ताकि वो गरीब से गरीब तक की ज...

राख में नई जिंदगी की तलाश..

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राख में जिंदगी ढूंढता बालक राख में जिंदगी ढूंढता यह बालक ये नहीं जानता कि आने वाले वक्त में इसके बाप-दादाओं का पुश्तैनी धंधा शायद इसी राख़ में दफ़्न हो जाए, या फिर मिट्टी से बने  कुल्हड़, सुराही, मटके या दिये आदि इतिहास के पन्नों पर पढ़ने को मिलें, कयोंकि हालात ऐसे बनते जा रहें हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की आने वाली नई पीढ़ी अपना पुश्तैनी धंधा नहीं करना चाहती। इस तरह से एक और हस्तशिल्प कला अपनी विलुप्ति की ओर अग्रसर है। मिट्टी से कुम्हार का नाता सदियों पुराना है। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े पुरातात्विक स्थलों में भी मिट्टी से बने पात्रों के साक्ष्य मिलें हैं। इसके उपरान्त हमारी वैदिक कालीन सभ्यता  में भी मिट्टी से बने पात्रों का उल्लेख मिलता है। अतः मानव सभ्यता के उद्भव के पश्चात से ही मनुष्य का मिट्टी से जो जुड़ाव हुआ वो आज तक कायम है।