गर्मी का फ़न, आम पना के संग..

बसंत के आते ही आम के पेड़ों पर बौर लगना शुरू हो जाती है| बौरों से लदे आम के पेड़ को देखकर गाँव के हरिया काका, दीनू चाचा, छोट्टन काका जैसे तमाम अनुभवी आदमी कयास लगाने शुरू कर देते हैं कि इस बार अमराई में आम कितना फरेगा| लेकिन मन में चिंता भी होती है, यह चिंता होती है असमय आने वाली आंधी की| अगर ये बैरन आंधी न आये तो इस बार आम खूब खाने और बेंचने को मिलेंगे| ऐसा अनुमान हर आम के बगीचे यानि हर अमराई वाला करता है| लेकिन होता वही है जो कुदरत चाहती है| इस बार जेठ ने आते ही लू के ठेपेदों की जगह अमराइयों को एक-दो तगड़ी आंधी का झटका दे ही दिया, बेचारी अमराइयाँ आंधी के इन थपेड़ों को न सह पाईं और जमीन में मुंह के बल चित्त हो गईं| लू रहेगी दूर , गर्मीं में आमपना पिएं भरपूर खैर जो भी हो आम जन के मन में गर्मी शुरू होते ही आम की खटास और मिठास का स्वाद घुलने लगता है, और घुले भी क्यों न, क्योंकि आम फलों का राजा जो ठहरा | एक राजा की भांति उसे अपने चाहने वालों को अपने रस से सरोबोर भी तो करना है| इसलिए अमराइयों में आम जी-भर के फरता है ताकि वो गरीब से गरीब तक की ज...