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गुरू ब्रह्म गुरू विष्णु...

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  आज शिक्षक दिवस पर समझ नहीं आता किस गुरु को अपना आदर्श बताऊं..?   अब तक के अकादमिक सफर में शिक्षकों से मेरा हमेशा ही मतभेद रहा है। मेरा और मेरे गुरुओं के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे, इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं किसी गुरू को अपना आदर्श बता, गुरू की महिमा का बखान नहीं करूंगा, और न ही   'गुरू ब्रह्म गुरू विष्णु...' जैसी कपोल-कल्पित बात करूंगा, क्योंकि ये सर्व विदित है कि आज के गुरू-शिष्य सम्बन्ध अर्जुन-द्रोण वाले नहीं रह गए..  आज वैसे एकलव्य नहीं हैं जो सहर्ष अपना अंगूठा गुरू दक्षिणा में भेंट कर दें और न ही विश्वामित्र जैसे गुरू ही हैं, जो कर्ण जैसे सूतपुत्र को अपनी सभी गुप्त विद्याएं सिखाकर उसे तत्कालीन समय का सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर बना दें..     मैं 'वक्त' यानि समय को अपना सबसे बड़ा गुरु मानता हूँ, क्योंकि समय से बेहतर इस संसार में कोई दूसरा गुरु नहीं है.. समय ही है जो हमें सही-गलत अच्छे-बुरे, और अपने-परायों में अंतर करना सिखाता है। मेरा अपना खुद का तजुर्बा है.. 'जो सबक प्यार से समझ नही आता, वह समय की बिन आवाज़ लाठी से समझ आ जाता है..' ...